कविता :खूबसूरत मिजाज
खूबसूरत मिजाज की चाह मे
सदियों से खौफ़ और
बेचैनी में बसर कर रहा है दलित
हर पल भय और आशंका के
अंवारा बादलों से घिरा रहता है
दलित.......
जातिवाद, शोषण, अत्याचार,
नरसंहार के भय से डरा-सहमा
आशंकित रहता है दलित
सदियों के तनाव का दु:स्वप्न
आंखों मे ठहरने नहीं देता
यकीन
आज भी हाशिये पर पड़ा
सुरक्षित राह ताक रहा है
दलित.......
मूलनिवासियों के पूर्वजों की कभी
सदियों पूर्व सत्ता थी
तब भारत सोने की चिड़िया था
आज भूमिहीन, अछूत, गरीब
और कहा जा रहा दलित.....
ये वही देश है,
कभी गुनगुनाता था,
आहो हवा मदमस्त थी
बसंत बयार बहती थी हरदम
गुंजती थी फिजां मे मानो शहनाई
वही उदासी की धुन बहती है अब
आतंकित रहता है दलित........
ये वही भारत है
जिसकी रगो मे बहती थी
समता, मानवता न्याय और
निश्छल प्रेम की अविरल धारा
आज उसी देश के दिल पर
बरसते हैं बेरुखी के नस्तर
दिल से रिसता रहता है
अविराम लहू
मूलनिवासी बना दिया गया है
दयनीय दलित.....
भारत जो सोने की चिड़िया था
वही चाहता है पुरानी पहचान अब
जीना चाहता है समतावादी
खूबसूरत मिजाज की
बसंतमयी आबो-हवा मे भी दलित......
डॉ नन्दलाल भारती
28/10/2017
No comments:
Post a Comment