रिश्ता भूख प्यास था अपना
जश्न की रात बरसी कयामत
लूट गया गुमान अपना
दगाबाजों के आस्तीन में
तीर ऐसे ऐसे लूट लिए
सिंगार और सपना
खौफ में जीने की आदत
पड़ने लगी है,
वक़्त बेवक़्त पलकें
गीली होने लगी हैं
सांसे बह रही है आस में
जैसे मरुस्थल में बसंत का बसना
हकीकत है यार
आंखों को आंसू तो दिया है अपना।।।।।
डॉ नन्दलाल भारती
07/07/2017
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