Monday, October 30, 2017

रिश्ता भूख प्यास था अपना

रिश्ता भूख प्यास था अपना
जश्न की रात बरसी कयामत
लूट गया गुमान अपना
दगाबाजों के आस्तीन में
तीर ऐसे ऐसे लूट लिए
सिंगार और सपना
खौफ में जीने की आदत
पड़ने लगी है,
वक़्त बेवक़्त पलकें
गीली होने लगी हैं
सांसे बह रही है आस में
जैसे मरुस्थल में बसंत का बसना
हकीकत है यार
आंखों को आंसू तो दिया है अपना।।।।।
डॉ नन्दलाल भारती
07/07/2017

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