Monday, July 5, 2010

विष की खेती

विष की खेती ..
नेकी पर कहर
बरस गया है
सगा आज
बैरी हो गया है ।
हक़ पर जोर ,
अजमाइश होने लगा है
लहू से खुद का ,
आज सवारने लगा है ।
कभी कहता दे दो ,
नहीं तो छीन लूगा
कहता कभी,
सपने मत देखो
वरना आँखे फोड़ दूंगा ।
माय की हाला में डूबा
कहा उसको पता,
बिन आँखों के भी
मन के तरुवर पर,
सपनों के भी
पर लगते है ।
हुआ बैरी अपना,
जिसको लेकर
बोया था सपना ।
धन के ढेर
बौराया
मद चढ़ा अब माथ
सकुनी का यौवन ,
कंस का अभिमान,
हुआ साथ ।
बिसर गयी नेकी
दौलत का भरी दंभ
स्वार्थ के दाव
नेकी घायल
छाती पर गम ।
नेकी की गंगा में
ना घोलो जहर
ना करो
रिश्ते के संग
हादसे
देवता भी तरसे ।
जीवन को भारती
मतलब बस ना करो
विष की खेती
डरा करो
खुदा से.................नन्द लाल भारती ... ०५.०७.२०१०

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