Friday, July 2, 2010

कागा

कागा
कागा भी आज राग ,
अलापने लगे है ।
असि पर आंकने वाले
मसीहा बनने लगे है ।
कैसे-कैसे चेहरे है
जमाने की भीड़ में।
उसूलो की तो बाते,
खेलते है
गरीब की भूख से ।
उसूले के मायने बदल ,
गए है आज ।
तरक्की बरसे खुद के द्वारे
सलामत रहे राज।
मय की मदहोशिया
मयखाने में थाप दे रहे
खुदा की कसम भारती
यही तो
तबाह कर रहे। नन्द लाल भारती ...०२.०७.२०१०

No comments:

Post a Comment