Wednesday, July 21, 2010

गुहार

जानता हूँ ,
पहचानता हूँ ,
नेक नियति ,
दुनिया बदलने का जज्बात
फ़र्ज़ पर कुर्बान होने की
ताकत एक बाप की ।
बाप ही तो है
मेहनत की कमाई से
जो
सुनहरा कल दे सकता है ,
खुद के परिवार
और
देश को ।
अफ़सोस यही बाप ,
जब बहक जाता है ,
सूरा की धार में बह जाता है ।
खुद इतना ,
नीचे गिर जाता है ,
पत्नी को आंसू ,
औलाद को खौफनाक कल
खुद धरती का
बोझ
बन जाता है ।
थूकते है
लोग सुराखोरी पर
कसते है व्यंग
परिवार की मजबूरी पर ।
सुरखोरो से है
गुहार
भारती हाथ ना लगाओ
नागिन को
डंस लेगी
पीढियों की बहार ........नन्द लाल भारती ......२१.०७.२०१०

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