Tuesday, September 7, 2010

सलाम

सलाम ..
माँ तुम्हारी देह
२७ अक्टूबर २००१ को
पंचतत्व में खो गयी थी
माँ मुझे याद हो तुम
तुम्हारी याद दिल में बसी है ।
आज भीतुम्हारा एहसास
साथ साथ चलता हा मेरे
बिलकुल बरगद की छाव की तरह।
दुःख की बिजुड़ी जब कड़कती है
ओढा देती हो आँचल
मेरी माँ
अंदाजा लग जाता है
मुझे
तुम्हारे न होकर भी
होने का ।
सुख-दुःख में तुम्ही
तो
याद आती हो
तुम्हारी कमी
कभ-कभ बहुत रुलाती है ,
जब ओसरी में गौरैया
जाते बर्तन के
फेंके पानी से
जूठन चुनकर अपने
बच्चो के मुंह में
बारी-बारी से
डालती है ।
तब तुम और तुम्हारा
संघर्ष
बहुत याद आता है
उभर आता है
धुधली यादो में बसा मेरा बचपन भी
माँ
तुम उतर आती हो
परछाई सरूप मेरे सामने
और
रख देती हो सर पर हाथ ।
कठिन फैसले की जब
घडी आती है
जीवित हो जाती हो जैसे तुम
ह्रदय की गहराईयो में
राह बदल लेती है
हर मुश्किलें ।
माँ तुम्हारे आशीष की छाव
फलफूल रहे है
तुम्हारे अपने
सींच रहे हा तुम्हारे सपने
और
रंग बदलती दुनिया में
टिका हूँ मै भी ।
माँ तेरे PRATI श्रद्धा ही
जीवन KA UTTHAAN है
यही श्रद्धा देती रहेगी
हमें
तुम्हारी थपकियो KA एहसास भी ।
माँ तुम तो नहीं हो
देह रूप में
विश्वाश है
तुम मेरी धड़कन में बसी हो
हर माताओं के लिए
गर्व का दिन है
मात्रिदिवास
आराधना का दिन है
आज कअ
मेरी दुनिया है
मेरी माँ स्वर्गीय सामारी
करते है
वंदना तुम्हारी
मारकर भी अमर है
तेरा नाम
हे माँ तुम्हे सलाम....नन्दलाल भारती ..०७.०९.२०१०

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