नारायणी ॥
गंगा सी मनोरथ वाली
नारायणी ,
मानवता का गौरव
जगत कल्याणी ।
दया अपार
ममता का सागर अथाह ,
घर परिवार पर आते ,
दुःख का झोंका
कर जाती कराह ।
मर्यादा खातिर
हर
हलाहल पी जाती ,
पति को परमेश्वर
खुद अर्धांगिनी कही जाती ।
स्वार्थ की आंधी
जीवन में भर रही है
खार,
आँखों से झरता नीर
कल्याणी होती लाचार।
अन्धविश्वासी लोग
सीता भी छली गयी
अग्नि परीक्षा
देकर भी मुक्त नहीं हुई ।
आज भी
कल्याणी कर रही गुहार
समानता का
मांग रही
अधिकार
चाहती बुराईयो का
बहिष्कार ।
हे दुनिया वालो
गंगा सी
मंतव्य
वाली की
सुनो पुकार
क्यों विष पीये
कल्याणी
दे दो
अधिकार ............नन्दलाल भारती.... १९.०९.२०१०
Sunday, September 19, 2010
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