Friday, September 3, 2010

फिक्र


फिक्र

ज्यो-ज्यो बेटी
बड़ी
होने लगी है,
फिक्र
बढ़ने लगी है .
मै
जानता हूँ ,
मेरी फिक्र से
बेटी
फिक्रमंद है ।
वही तो है
जिसे बाप के दर्द का
एहसास है
सच बेटी ही तो है ,
असली दुनिया ।
तमन्ना है
मेरी भी
वह
आसमान छू ले ।
यकीन है ,
वह हार
ऊँचाईया छू लेगी ,
क्योकि
उसमे
उड़ने की ललक है ,
तभी तो अव्वल है ।
बेटी ही तो है ,
जो बाप के लिए
पूजा करती है
सुबह-शाम भगवान् की।
कभी
गुरु
बन जाती है
तो
कभी
शिष्या ,
कभी
डांटती है
तो
कभी
समझाती है ,
कभी
सिर पर
हाथ फिरती है
सुरक्षा का ।
सच
बेटी को फिक्र है
बाप और खानदान के
मर्यादा की ,
माँ-बाप और भाई को
फिक्र है
उसके
कल की-----नन्दलाल भारती....०३.०9.२०१०

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