Thursday, September 9, 2010

MADHUMAAS

मधुमास ..
भविष्य के बिखरे पत्तो के निशान पर
आनुए लगा है
उम्र का नया मधुमास
रात दिन एक हुए थे
पसीने बहे
खुली आँखों में सपने बसे
वाद की शूली पर टांगे गए
अरमान
व्यर्थ गया पसीना
मारे गए सपने
मरते सपनों की कम्पित है
सांस ।
संभावना की धड़क रही है
नब्जे
अगले मधुमास के
विहस उठे सपने
नसीब के नाम ठगा गया कर्म
मरुभूमि से उठती
शोले की आंधी
राख कर जाती
सपनों की जवानी
काप उठाता गदराया मन
भेद की लपटों से
सुलग जाता बदन ।
तालीम का निकल चुका
जनाज़ा
योग्यता का उपहास
सपनों का बजता नित
बाजा
जीवन में खिलेगा मधुमास
बाकी है आस
पसीने से सींचे
कर्मबीज से उठेगी सुवास ।
उजड़े सपनों के कंकाल से
छनकर गिरती परछाई में
संभानाओ को खोजता
मधुमास
सुलगते रिश्ते भविष्य के
कत्लेआम
उमंगो पर लगा जादू-टोना
मरते सपने बने
ओढ़ना बिछौना ।
संभावनाओ के संग
जीवित उमंग
कर्म होता पुनर्जीवित
भरोसा
साल के पहले दिन
कर्म की राह गर्व से बढ़ जाता
संभावनाओ की उग जाती कलियाँ
जीवन के मधुमास से छंट जाए
आंधिया ।
पूरी हो जाए
मुराद
वक्त के इस मधुमास
लुटे भाग्य को मिले
उपहार बासंती
कर्म रहे विजयी
तालीम
ना पाए पटकनी
जिनका उजड़ा भविष्य
उन्हें मिले जीवन का हर मधुमास
हो नया साल मुबारक
गरीब-अमीर सब संग-संग गाये गान
जीवन की बाकी प्यास
भविष्य के बिखरे
पत्तो के निशान पर
छा जाए मधुमास .......नन्दलाल भारती ॥ ०९.०९.२०१०

1 comment:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    हिन्दी का विस्तार-मशीनी अनुवाद प्रक्रिया, राजभाषा हिन्दी पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें

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