Thursday, July 1, 2010

पिता
मै पिता बन गया हूँ
पिता के दायित्व
और
संघर्ष को जीने लगा हूँ
पल-प्रतिपल ।
पिता की मंद पड़ती रोशनी
घुटनों की मनमानी
मुझे
डराने लगी है ।
पिता के पाँव में लगती ठोकरे
उजाले में सहारे के लिए
फड़कते हाथ
मेरी आँखे नाम कर देते है ।
पिता धरती के भगवान है
वही तो है ,
जमाने के ज्वार-भाटे से
सकुशल निकालकर
जीवन को मकसद देने वाले ।
परेशान कर देती है
उनकी बूढी जिद ,
अड़ जाते है
तो
अड़ियल बैल के तरह
समझौता नहीं करते
समझौता
करना तो सिखा ही नहीं है ।
पिता अपनी धुन के पक्के है
मन के सच्चे है
नाक की सीध चलने वाले है ।
पिता के जीवन का
आठवा दशक प्रारम्भ हो गया है
नाती-पोते ल;कुस हो गए है
मुझे भी मोटा चश्मा लग गया है
बाल बगुले के रंग में ,
रंगते जा रहे है
पिता है कि
बच्चा समझते है ।
पाँव थकते नहीं
उम्र के आठवे दशक में भी
भूले -भटके शहर आ गए
तो
आते गाव जाने कि जिद
गाव पहुचते
शहर रोजी-रोटी कि तलाश में आये
बेटा-बहू- नाती -पोतो कि फिक्र ।
पिता कि यह जिद
छाव लगती है
बेटे के जीवन की।
सच कहे तो यही जिद
थकने नहीं देती
आठवे दशक में भी पिता को ।
आज बाल-बाल बंच गए
सामने कई चल बसे
बस और जीप की खुनी टक्कर थी
सिर हाथ फेरकर मौत ने रास्ता
बाल ली थी ।
खटिया पर पद गए है ,
खटिया पर पड़े-पड़े
पिता होने का फ़र्ज़ निभा रहे है
कुल-खानदान ,सद्परम्पराओ की ,
नसीहत दे रहे है
जीवन में बाधाओं से
तनिक ना घबराना ।
कर्म-पथ पर बढ़ाते रहने का ,
आह्वाहन कर रहे है ।
यही पिता होने का फ़र्ज़ है
पिता अपनी जिद के पक्के है
और अब मै भी।
यक़ीनन ,
परिवार ,घर-मंदिर के
भले के लिए जरुरी भी है
मै भी समझाने लगा हूँ
क्योंकि मै पिता बन गया हूँ ।
औलाद के आज- कल की फिक्र
मुझे पिता की विरासत में ,
मिल रही है ,
यकीन है
मेरी फिक्र एक दिन
मेरी औलाद को
सीखा देगी
एक
सफल पिता के दावपेंच ..... नन्दलाल भारती ०१-०७-२०१०

1 comment:

  1. दिल दहला देने वाली सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार


    सुप्रसिद्ध साहित्यकार व ब्लागर गिरीश पंकज जी का इंटरव्यू पढेँ >>इंटरव्यू पढेँ >>>>
    एक बार अवश्य पढेँ

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