गरीबो की बस्ती में
दीया जुगनू होता है ।
वहा अंधियारे
कनक का उजियारा
होता है।
माथे चिंता,
रोम-रोम चिता,
सुलगते है ।
दिल में गूंजती आह
बेवस सास भरते है।
नहीं मिला मसीहा
माया की दौड़ में
सब भागे ।
बेवासो की आँखे
ललचाई।
कोई जा रहा आगे ।
झोपडियो को
कहा ?
देखता
महलों में रहने वाला ।
माना मसीहा
पर
कहा
वो तो शोषण
करने वाला ।
थक गया
गरीब जोह जोह कर बाटे।
ना पलटी
किस्मत
कटती विपदा की राते ।
बौनी हुई कसमे
भारती
विसर जाते
सारे वादे ।
ताज निज मोह
गढ़ काल के गाल
सुनहरी यादे... नन्दलाल भारती ॥ ०८.०८.२०१०
Saturday, August 7, 2010
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गरीबो की बस्ती में
ReplyDeleteदीया जुगनू होता है ।
सही है !!
बहुत संवेदनशील रचना
ReplyDeleteमंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
मंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
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