सूझता नहीं..
कुछ सूझता ही नहीं ,
अभिमान के अलावा।
ढँक लेता हूँ
चेहरा
उजाले में
बंद कर लेता हूँ
कान भी।
ना सुन सकू भंवरी
जैसी
औरतो की चीख पुकार।
बंद कर लेता हूँ
आँखे
ना देख सकू
गोहाना
ओर
बेलखेड सरीखा रक्तपात ।
मेरा क्या
रिश्ता क्या है मेरा ।
मै तो नकाबपोश
सिंहासन पर बैठा ।
क्या लेना देना
किसी कमजोर के
जलते घर ,
लूटती आबरू
ओर
दम तोड़ती
मानवता से ।
सचमुच
मै
गूंगे बहरे
अन्धो के बीच
गूंगा बहरा
और
अंधा हो गया हूँ
भारती
तभी तो
कुछ सूझता ही नहीं
अभिमान के अलावा ...नन्दलाल भारती .... १९.०८.२०१०
Thursday, August 19, 2010
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बहुत गहन भाव लिए बहुत भड़िया प्रस्तुति .....आभार !
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