Sunday, August 29, 2010

जीवन विकासिनी

जीवन विकासिनी
हे नारी तुम हो
सृजनकारी ,
जगत कल्याणी
श्रद्धा हमारी ।
ब्रहम्स्वरुपी कराती सर्वस्व अर्पण
बंधी विरासत करती सम्पर्पण .
खिचती खाका पक्का
सृजन का सारा ,
सृष्टि की वरदान
झरती त्याग की धारा।
खुद को न्यौछावर करना
कोई तुमसे सीखे ,
दिव्यज्योति
दुर्गा, लक्ष्मी ,सरस्वती सरीखे ।
हे कल्याणी तुम बिन
जीवन कैसा ।.........?
ऋणी जग पर तू कहती
उपकार कैसा ............?
जीवनदायिनी
चलते रहना
काम है तेरा ,
ममता की मूर्ति
मंगलकारी है
नारी....
जहा पड़े पग
तेरे
साबित हुई
उपकारी ।
नेकी माने
जग सारा
वक्त कहे महान
जब तक चाँद में
शीतलता
सूरज में है
ताप
नभ जैसा उंचा नाम तेरा
तू ही है
धरती का
स्वाभिमान .........................नन्दलाल भारती ....२९.०८.२०१०

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