जीवन विकासिनी॥
हे नारी तुम हो
सृजनकारी ,
जगत कल्याणी
श्रद्धा हमारी ।
ब्रहम्स्वरुपी कराती सर्वस्व अर्पण
बंधी विरासत करती सम्पर्पण .
खिचती खाका पक्का
सृजन का सारा ,
सृष्टि की वरदान
झरती त्याग की धारा।
खुद को न्यौछावर करना
कोई तुमसे सीखे ,
दिव्यज्योति
दुर्गा, लक्ष्मी ,सरस्वती सरीखे ।
हे कल्याणी तुम बिन
जीवन कैसा ।.........?
ऋणी जग पर तू कहती
उपकार कैसा ............?
जीवनदायिनी
चलते रहना
काम है तेरा ,
ममता की मूर्ति
मंगलकारी है
नारी....
जहा पड़े पग
तेरे
साबित हुई
उपकारी ।
नेकी माने
जग सारा
वक्त कहे महान
जब तक चाँद में
शीतलता
सूरज में है
ताप
नभ जैसा उंचा नाम तेरा
तू ही है
धरती का
स्वाभिमान .........................नन्दलाल भारती ....२९.०८.२०१०
Sunday, August 29, 2010
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