दर्द ॥
थक रहा हूँ
आवाज़ देकर
ना मिल रहा
कोई
साथ चलने वाला
फिजा में भर
चुकी है
जैसे हाला।
कहा सुन रहा
कोई
मेरी आवाज़
टंग गए है
दिलो पर
ताले ...
कानो की खिड़किया
हो चुकी है
बंद।
भरे जहा में
उफनते दर्द की
दरिया को
कोई रोकने वाला
ना मिला ।
दर्द भरी ज़िन्दगी को
किस्मत मान बैठा ,
कहा और किससे
करू गिला शिकवा
इस जहा में
दर्द के
सिवाय
और
क्या मिला.......नन्दलाल भारती २३.०४.१०
Monday, August 23, 2010
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दर्द ही दर्द.
ReplyDeleteधन्यवाद.
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना। बधाई।
ReplyDeleteबढिया रचना .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
ReplyDeleteरक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.