Monday, August 23, 2010

दर्द

दर्द
थक रहा हूँ
आवाज़ देकर
ना मिल रहा
कोई
साथ चलने वाला
फिजा में भर
चुकी है
जैसे हाला।
कहा सुन रहा
कोई
मेरी आवाज़
टंग गए है
दिलो पर
ताले ...
कानो की खिड़किया
हो चुकी है
बंद।
भरे जहा में
उफनते दर्द की
दरिया को
कोई रोकने वाला
ना मिला ।
दर्द भरी ज़िन्दगी को
किस्मत मान बैठा ,
कहा और किससे
करू गिला शिकवा
इस जहा में
दर्द के
सिवाय
और
क्या मिला.......नन्दलाल भारती २३.०४.१०

4 comments:

  1. दर्द ही दर्द.

    धन्‍यवाद.

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  2. बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना। बधाई।

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  3. बढिया रचना .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

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  4. बहुत उम्दा!

    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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