गमो के दौर ..
गमो के दौर है,
मेरा क्या कसूर?
हालात के सताए
हो गए
मजबूर।
छाव की आस
धुप में बहुत
तपे हजूर।
बदकिस्मती हमारी
कांटे मिले भरपूर।
विष बाण का सफ़र
मान बैठा दस्तूर।
आंसुओ का पलको से
खेलना
तकदीर बन गया
हजूर ।
टूटे हुए
ख्वाब संग
भारती
उम्मीद से खड़ा
हूँ बहुत दूर।
गमो के दौर है
मेरा क्या कसूर..........नन्दलाल भारती ०९.०८.२०१०
Monday, August 9, 2010
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