धनिखा॥
धानिखाओ की बस्ती में ,
दौलत का बसेरा
गरीबो की बस्ती में
भूख अभाव का डेरा ।
अहि मुशिबतो की कुलांचे
चिथड़ो में लिपटे शरीर ,
हर चौखट पर
लाचारी
कोस रहे तकदीर ।
गरीबो की तकदीरो पर
पड़ते है डाके यहाँ,
भूख पर रस्साकसी
मतलब साधते है वहा ।
मज़बूरी के जाल
उम्र बेचा जाता है ,
धानिखाओ की दूकान पर
पूरा दाम नहीं ,
मिल पता है ।
बदहाली में जीना मरना
भारती
नासी बन गया है ,
अमीर की तरक्की
गरीब , बरिब ही रह गया है ...नन्दलाल भारती ..१4.०८.०१० ( मोबाइल -०९७५३०८१०६६ )
Friday, August 13, 2010
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भारती जी लिखते रहिये
ReplyDeleteएक अच्छी पोस्ट लिखी है आपने ,शुभकामनाएँ और आभार
आदरणीय
हिन्दी ब्लाँगजगत का चिट्ठा संकलक चिट्ठाप्रहरी अब शुरु कर दिया गया है । अपना ब्लाँग इसमे जोङकर हिन्दी ब्लाँगिँग को उंचाईयोँ पर ले जायेँ
यहा एक बार चटका लगाएँ
आप का एक छोटा सा प्रयास आपको एक सच्चा प्रहरी बनायेगा
।