नारायण ॥
गरीब के दामन,
दर्द ,
चुभता निशान छोड़ जाता है ,
दर्द के बोझ जवान
बूढ़ा होकर रह जाता है ।
दर्द में झोकने वाला
मुस्कराता है
किनारे होकर,
बदनसीब थक जाता है
दर्द का बोझ ढोकर।
शोषित वंचित का
जुल्म
जुल्म आदमियत पर
दर्द का जख्म
रिस रहा उंच नीच के नाम पर ।
मातमी हो जाता है,
गरीब का जीवन सफ़र
सांस भरता गरीब
अभावों के बोझ पर ।
जंग अभावों से ,
हाफ-हाफ करता बसर,
चबाता रोटी
आंसुओ में भिगोकर ।
उत्पीडित नहीं
कर पाता पार
दर्द का दरिया
जीवन भर ।
दिया है दर्द
जमाने ने
दीन जानकर ।
गरीब का दामन
रह गया
जख्म का ढेर होकर ।
अर्द भरा जीवन
कटते लम्हे
काटो की सेज पर ,
अब तो हाथ बढाओ
भारती
डूबते की ओर
वंचित है ,
उठ जाओगे
नर से
नारायण होकर। ....नन्द लाल भारती १३.०८.२०१०
Friday, August 13, 2010
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बहुत सुन्दर ..प्रेरणादायक रचना
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