मुट्ठी में आसमान ..
आज गाव को देखकर
ऐसा लगने लगा है ,
मानो हमारा गाव
तरक्की करने लगा है
कंडे थापने वाले हाथ
कलम थामने लगे है ।
गाव की दहलीज पर
सर्वशिक्षा अभियान
बेटा-बेटी माँ-बाप के
आँख ठेहुना सामान
दहेज़ भ्रूण ह्त्या पाप है
लड़की का जन्म पुण्य
नहीं कोई
अभिशाप है ।
आज के ये ब्रह्मवाक्य
गहराई तक
उतरने लगे है ।
बूढी रुढियो के दम
उखड़ने लगे है ।
तभी तो गाव की
लड़किया
साइकिल पर सवार
लड़कियों के झुण्ड
तितिलियो
जैसा रंग बिखेरता हुआ
मन को हमारे
सकून देने लगा है ।
पीछे झाँक कर मन
बोझिल
हो जाता है ,
क्यों
हुआ अन्याय
बूढी रुढियो के भ्रम
लड़की की तकदीर का
हुआ दहन।,
आज भी लड़किया
सिलाई पुरी से
उबी नहीं है ,
बदलते वक्त में
आसमान
छूने की ललक में
डूबी हुई है ।
एहसास
पुख्ता होने लगा है
लड़की का भाग्य
सवरने लगा है
मुट्ठी में
आसमान
आने लगा है ,
सच मुझे
यकीन होने लगा है
हमारा गाव भी
अब
तरक्की करने लगा है ..नन्दलाल भारती ॥ २८.०८.२०१०
Friday, August 27, 2010
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अच्छी कविता ,लिखते रहिये संक्षिप्त सटिक और बेबाक
ReplyDeleteआपके इस ब्लाँग का मोबाइल संस्करण हमने जारी कर दिया है वेब पता आपको मेल कर देते हैँ ।