Wednesday, August 11, 2010

धर्म

धर्म
आजकल शहर
खौफ में
जीने लगा है ,
कही दिल
तो कही
आशियाना
जलने लगा है ।
आग उगलने वालो को
भय लगने
लगा है ,
तभी तो शहर का
चैन
खोने लगा है ।
धर्म के नाम पर
लहू का खेल
होने लगा है।
सिसकिया थमती नहीं
तब तक
नया घाव होने लगा है।
कही भरे बाज़ार
तो कही
चलती ट्रेन में
धमाका होने लगा है ।
आस्था के नाम पर,
लहू -कतरा-कतरा
होने लगा है ।
कैसा धर्म ?
धर्म के नाम
आतंक होने लगा है
लहुलुहान कायनात ,
धर्म बदनाम होने लगा है ।
आसुओ का दरिया ,
कराहने का शोर
पसारने लगा है ।
धर्म के नाम
बांटने वालो का
जहा रोशन होने लगा है ।
आसुओ को पोंछ भारती
आतंकियों को
ललकारने लगा है
धर्म सद्भाव बरसता
क़त्ल क्यों होने
लगा है
आजकल शहर ,
खौफ में जीने लगा है ..नन्दलाल भारती॥ ११.०८.२०१०

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