सपनों की बारात ॥
मुझे भी सपने आते है ,
भले ही
तरक्की से वंचित हूँ।
मै सोता हूँ,
सपनों की बारात में,
नीद की गोलिया खाकर नहीं ।
थक कर सो जाता हूँ
रुखी सुखी रोटी खाकर ।
भर पेट पानी पीकर ,
बसर कर लेता हूँ,
सपनों में भी
भर नीद सो लेता हूँ।
महंगाई,उत्पीडन के संग
गरीबी ने भी घेरा है .
गैरो से क्या
शिकायत
अपनो ने भी पेरा है ।
मुझे रोने से
परहेज़ नहीं
एकांत में
रो लेता हूँ।
कहते है
उगता वही है
जो बोया जाता है
ना तो मैंने
ना ही
मेरे पुरखो ने
कोइ विष बृक्ष
लगाया ,
ना जाने कितनी पीढियों से
विषपान कर रहा हूँ।
मै थकता नहीं
क्योंकि
तन से बहता
पसीना है ,
मै वंचित अभावों में भी
मुझे आता जीना है ।
उम्मीद है
मेरा परिश्रम बेकार नहीं जायेग ,
मिलेगा हक़
कल ज़रूर मुस्कराएगा।
मै
यकीन पर
कायम हूँ
जीतूंगा जंग
खिलेगा
मेरे श्रम का रंग ।
मै
हारूँगा नहीं भारती
क्योंकि
मुझे जितना है ... नन्दलाल भारती ....२०.०८.२०१०
Friday, August 20, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment