पतिता॥
गुलामी, माँ के पैरो की देख जंजीरे,
पतिताओ के घुघुरू उगले थे अंगारे।
आज़ादी को महासमर,
राजा रंक सब थे जुटे
देश भक्त पतिताए
कैसे रहती पीछे
वे भी कूद पड़ी ।
अज़ीज़न नर्तकी देशभक्त
कानपुर वाली
देश पर मर मिटने का
जज्बा रखने वाली ।
कानपुर में गोरो ने किया
आक्रमण जब
कूद पड़ी रणभूमि में
वीरांगना तब ।
दुर्भाग्यवस
गोरो के हाथ आ गयी
गोरो की शर्त माफ़ी मांगे,
हो गयी शहीद
रिहाई की शर्त को
ठोकर
मार गयी ।
पूना की चंदाबाई देशभक्त थी
गीतों से देशप्रेम की मशाल
जलाया करती थी ।
चंदाबाई का गीत प्रसिध्द एक
परिंदों हो जाओ आजाद
काहे तुम पिज़रे में पड़े
राजाजी जुल्म करे।
कशी की ललिताबाई
चंदा मांगती थी
खद्दरधारी चरखा
चलाया करती थी ।
अंग्रेज कोतवाल की तरफ
पीठ कर थी गाई
ऐसो की क्यों देखे सूरत
जिन्हें वतन से अपने नफ़रत।
आरा की गुलाबबाई
भी
शोला थी
आज़ादी खातिर
तलवार उठा ली थी ।
पतिताए भी धन्य ,
आज़ादी के समर तप
पवन हुई
भारत माता की बेड़िया
काटने में
सफल हुई।
भले भूल गया हो
इतिहास
पतिताए भी
आयी
देश के काम
ऐसी जानी-अनजानी
शहीद
पतिताओ को प्रणाम ......नन्द लाल भारती॥ २८.०८.२०१०
Friday, August 27, 2010
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