Sunday, August 8, 2010

मरुभूमि

मरुभूमि
बनी ज़िन्दगी मरुभूमि की सेज
अक्स बाँट रही दुनिया।
बेक़रार दिल
खुश्बू के फांक
बरसने
लगी है
अंखिया ।
कैसी चकाचौध
डसने लगी है
जमाने की खाईया ।
मरुभूमि की सेज
सजने लगी है
तन्हाईया ।
वक्त के समंदर
उमड़ने लगी है
आंधिया ।
सजाने लगी है,
काम क्रोध की दुसुवारिया ।
बंट गए अक्स ,
ज़िन्दगी के ,
चुभती रुसुवाईया ।
सवरे थे
कुछ सपने
अब उजाड़ने लगी है
आन्धिया ।
उम्र भागे
दिया सा ख्वाब
बसा दिल की गहराईया ।
खाक ज़िन्दगी ,
राख में जोड़ता
ज़ीने की लडिया
जेहनो में भरा करार
गढ़ता उजियारे की कलियाँ
कायनाते ख्वाब
चले साथ
छंट जाए आंधिया । नन्द लाल भारती ॥ ०८-०८-२०१०

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